________________
अपरिचय दीर 141
नौका किनारे लग चुकी थी । लोग अब भयरहित होकर नौका से उत्तर रहे थे और बोलते जा रहे थे कि "धन्य है इन महापुरुष को । इन महापुरुष के प्रभाव से आज हम बच गये। प्रभु भी नौका से उतरे। ईर्यापथिकी आलोचना की और थूणाक सन्निवेश की ओर चलने लगे । गंगा तट की उस आर्द्र-कोमल रेती पर पांव रखते हुए प्रभु के सुन्दराकार पैरों की आकृति हूबहू उतर गयी। एक सामुद्रिक लक्षणशास्त्र का ज्ञाता पुष्प नामक व्यक्ति उधर से निकला। उसने प्रभु के पांवों के निशान देखे | देखकर अचम्भित रह गया। ये निशान तो चक्रवर्ती सम्राट के पांव के हैं। तो क्या चक्रवर्ती यहां से अकेले नंगे पांव गये है? क्या उनके साथ कोई नहीं है? उनको राज्य ऋद्धि नहीं मिली अथवा किसी ने उनके साथ धोखा कर लिया? ऐसे महापुरुष की इस समय में मुझे सेवा करनी चाहिए ताकि प्रसन्न होकर वे मुझे कुछ देंगे। ऐसा गन मे चिन्तन करता हुआ वह पुष्प नैमित्तिक वहां से प्रभु के कदम-चिह्नों के साथ-साथ चलता जाता है।