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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 136 गजब का परिवर्तन कि चींटियों पर क्रोध आना दूर, लेकिन उसके विपरीत चिन्तन कर रहा है कि यदि मैं जरा-सा भी हिलूंगा तो कीड़ियां मेरे शरीर के नीचे आकर दव जायेंगी। वस, इसी अनुकम्पा से हिलना-डुलना बन्द कर दिया | मन में करुणा का अजस्र स्रोत प्रवाहित करने वाला नाग निरन्तर उत्कृष्ट अध्यवसायों में रमण करता है और करुणासिन्धु भगवान अपनी करुणामय दृष्टि से उसका सिंचन कर रहे हैं। संथारा ग्रहण किये एक पक्ष हुआ। वह चण्डकौशिक धर्म को प्राप्त कर अष्टम देवलोक का देव वना और प्रभु महावीर चण्डकौशिक के मरणोपरान्त वहां से विहार कर उत्तर वाचाल पधार गये। प्रभु के अर्ध-मासक्षपण के पारणे का दिन था। पारणे के लिए स्वयं भिक्षाटन करने हेतु नागसेन नामक गृहस्थ के यहां पधारे । उस दिन नागसेन का पुत्र, जो चार वर्ष से परदेश में गया था, वह घर पर आया था। उस पुत्र की खुशी में नागसेन ने जीमणवार का कार्यक्रम रखा। अनेक लोगों को आमंत्रित किया था। इधर भोजन बनकर तैयार हुआ और उधर करुणासागर भगवान् महावीर उसके उधर ही पधार रहे थे। इस से प्रभु को आता हुआ देखकर वह बड़ा ही हर्षित हुआ। भक्तिपूर्वक प्रभु को प्रतिलाभित करता है। सारा वायुमण्डल आकाश-निसृतः 'अहोदानं-अहोदानं' की ध्वनि से गुंजायमान होता है। देवगण स्वर्णनिष्कों के साथ-साथ पांच दिव्यों की वर्षा करते हैं। प्रभु पारणा करके श्वेताम्बिकारी की ओर प्रस्थान करते हैं। श्वेताम्बिका में पदार्पण :- धर्मनायक प्रभु वीर पदाति विहार कर श्वेताम्बिका की ओर पधार रहे थे। गुप्तचरों ने श्वेताम्बिका के सम्राट परदेशी को सूचित किया- "राजन! श्रमण भगवान् महावीर पैदल विहार करते हुए वाचाला से श्वेताम्बिका पधार रहे हैं। धर्मनिष्ठ प्रभुभक्त राजा समाचार श्रवण कर बड़ा हर्षित होता है और नागरिक, मंत्री और अनेक राजाओं के परिवार सहित भगवान् के सन्मुख जाता है। प्रभु जब दृष्टिगत होते हैं तो भक्तिपूर्वक वन्दन करता है। प्रभु को अपने नगर में ले जाता है। वहां से प्रभु सुरभिपुर की ओर विहार करते हैं। वहां सुरभिपुर से थूणाक सन्निवेश में प्रभु को पधारना था लेकिन
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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