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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर शरीर में प्रवेश करता है और समागत लोगों से पूछता है, "क्या तुम मेरा अतिशय देखने आये हो?" सभी ने स्वीकारात्मक उत्तर दिया- "हां।" तब सिद्धार्थ देव ने उनके भूत-भविष्य की घटनाओं का अक्षरशः सत्य कथन किया, जिसे श्रवण कर लोग बड़े आनन्दित हुए, प्रभु की महिमा का गान किया और वन्दन कर लौट गये। अब प्रतिदिन सैकड़ों की भीड़ वहां आती। सिद्धार्थ उन्हें उत्तर देता और वे सन्तुष्ट होकर पुनः लौट जाते। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा।
एक दिन ग्राम के लोगों ने सिद्धार्थ से कहा- "देवार्य! हमारे गांव में भी अच्छंदक नामक एक ज्योतिषी है । वह भी आपकी तरह भूत-भविष्य का ज्ञाता है। आपकी दृष्टि में वह कैसा है।" तब सिद्धार्थ ने कहा, "वह तो कुछ भी नहीं जानता । मात्र आप जैसे भोले प्राणियों को ठगकर आजीविका चलाता है ।" यह सुनकर ग्रामवासियों ने अच्छंदक से आकर कहा, "अरे अच्छंदक तूं तो भूत-भविष्य की बातों को सत्य रूप से नहीं जानता। ये सारी बातें तो नगर के बाहर पधारे हुए देवार्य जानते हैं।" तब अच्छंदक अपनी प्रतिष्ठा को धूमिल जानकर बोला"अरे! तुम सत्य बात जानते नहीं हो इसलिये उस देवार्य ने तुम्हारे सामने यह सब मनगढन्त कहा । चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूं। मेरे सामने कहे तब जानूं।" यह कहकर क्रोधाभिभूत अच्छंदक लोगों के साथ में, जहां प्रभु ध्यान कर रहे थे वहां चला आया और एक घास का तृण दोनों हाथों में पकड़ कर देवार्य से बोला - "बताओ, मैं इस तृण को छेद पाऊंगा या नहीं?" इस प्रश्न के पीछे अच्छंदक की यह माया छिपी थी कि यदि वह देवार्य कह देगा छेद पाऊंगा तो मैं नहीं छेदूंगा और यदि यह कहेगा नहीं छेदोगे तो जरूर छेदूंगा। लेकिन सिद्धार्थ देव अवधिज्ञानी था। उसने कहा कि तुम तृण को नहीं छेद पाओगे। तब अच्छंदक अंगुली को तैयार कर तृण छेदने में तत्पर हुआ। उसी समय शक्रेन्द्र अपनी सभा में उपयोग कर रहे हैं। देखते ही अचम्भित रह गये । ओह! गजव हो रहा है। एक सामान्य ज्योतिषी प्रभु की वाणी मिथ्या करने का प्रयास कर रहा है। तभी शक्रेन्द्र ने अच्छंदक की दसों अंगुलियों को वज्र से छेद डाला । तृण से छेदित अंगुलियों से वह आर्त यान को प्राप्त हुआ । सब लोग उसे देख हंसने लगे । अच्छंदक पागल
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