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अपश्चिग तीर्थकर महावीर - 125
(क) सामिणा पुवपयोगेण वाहिया पसारिया; आव. मलय.; पृ. 268 (ख) पितृमित्रं कुलपतिस्तत्र नाथमुपस्थितः।। पूर्वाभ्यासात् स्वामिनापि तस्मिन् वाहुः प्रसारितः । । त्रिषष्टि 10/3/50 (ग) पुवनेहेण सामि दळूण सागयंति भणिऊण संमुहमुवडिओ भयवयावि पुव्वपओगेण चेव वाहा पसारिया । महावीर चरियं (गुणचन्द्र).
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आचारांग; प्रथम श्रुत स्कन्ध; नवम अध्ययन; प्रथम उद्देशक 1. अहासुत्तं वदिस्सामि, जहा से समणे भगवं उट्ठाय ।
संखाए तंसि हेमंते, अहुणा पव्वइए रीइत्था। 2. णो चेविमेण वत्थेण, पिहिस्सामि तंसि हेमंते।
से पारए आवकहाए, एतं खु अणुधम्मियं तस्स । चत्तारि साहिए मासे वहवे पाणजाइया आगम्म।
अभिरुज्झ कायं विहरिसु, आरुसियाणं तत्थ हिंसिंसु । (ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि; पृ. 267 (क) आचारांग: 1/9/1 (ख) जैन धर्म का मौलिक इतिहास: प्रथम भाग: पृ. 572-73 (क) आचारांग; 1/9/1 (ख) जैन धर्म का मौलिक इतिहास: प्रथम भाग; पृ. 572-73 आचारांग; 1/9/1 (क) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि; पृ. 268 (ख) आवश्यक चूर्णि; जिनदासः पृ. 271 (क) आचारांग: 1/9/1 (ख) जैन धर्म का मौलिक इतिहास; प्रथम भाग: पृ. 572-73 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदासः पृ. 271 (ख) त्रिषष्टि एलाका पु. चा.: पुस्तक 7. पर्व 10: पृ. 33
आवश्यक चूर्णि, जिनदासः पृ. 271 निषष्टि एलाका पु. चा.; पुस्तक 7: पर्व 10. पृ. 34 सहर्म मण्डन समवायांग (1) आवश्यक चर्णि: मलयगिरि (अ) आवश्यक सुनि, जिनदास. पृ 27:
सारवर नि गलगिरि, पृ 265