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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 123
पीछे-पीछे घूमो। वह अर्धवस्त्र भी कहीं पर गिरेगा ही, तब तुम उसे उठा लाना और इस पूर्णवस्त्र को मैं अच्छे-से जोड़ दूंगा । तब तुम उसे नन्दीवर्धन को बेच देना ।
रफूगर की इस बात को सुनकर वह दरिद्र ब्राह्मण प्रभु महावीर के पास पहुंचा और पीछे-पीछे घूमने लगा । तदनन्तर एक वर्ष और एक मास के पश्चात् जब प्रभु सुवर्ण बालुका के तट पर पधारे तब उनका वह अर्ध देवदूष्य वस्त्र कांटों में उलझ गया । प्रभु ने उसको वहीं वोसिरा दिया । तव वह वृद्ध ब्राह्मण उस वस्त्र को लेकर उसी चुनकर के पास गया। उसने दोनों खण्डों को बहुत अच्छी तरह जोड़ दिया । तव उस ब्राह्मण ने नन्दीवर्धन को वह वस्त्र एक लाख दीनार में बेच दिया और जीवनभर के लिए अत्यन्त सुखी बन गया।
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(क) आवश्यक, मलयगिरि, पृ. 266
(ख) आवश्यक चूर्णि, पृ. 268
(ग) देवाणुप्पिया! परिचत्तसयलसंगो हं संपंयं, तुभं च दारिद्दोवदुओ । ता इमरस मज्झंऽसावसत्तवासस्स, अद्धं घेत्तूण गच्छसु त्ति । चउपन्नमहापुरिसचरियं, पृ. 273, आचार्य शीलांक
(घ) त्रिषष्टि श्लाका पुरुषचारित्र, पृ. 30-43 (ड) महावीर चरियं; गुणचन्द्र, पृ. 143-44 (च) महावीर चरियं; गुणचन्द्र; पृ. 863-64 (छ) आवश्यक हरिभद्रीय वृत्ति; पृ. 187 (क) विशेषावश्यक भाष्य; 1982
(ख) आवश्यक मलयगिरि वृ. पृ. 266
(ग) त्रिषष्टि एलाका पुरुषचारित्र; सर्ग 10, पृ. 31, पुस्तक 7
वीर विहार मीमांसा; विजयेन्द्र सूरिः पृ. 23
(क) आव. नियुक्ति अवचूर्णि हरि: वृत्ति 273 (ख) आप मलयगिरि पृ. 267
(ग) त्रिपष्टि एलाका पुरुषचारित्र; पुस्तक 7: पर्व 10: पृ. 31 (क) आवश्यक नियुक्ति अवचूर्णि हारिभ्रद्रीय, पृ. 273
(ख) आवश्यक मलयगिरि, पृ. 267
आवश्यक मलयगिरी, पृ. 267
(क) आवश्यक मलयगिरि: पृ. 267
(ख) आवश्यक चूर्णि जिनदास गणि महत्तर कृतः पृ. 270