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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर
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कुमार! पर्णकुटी पशु खा रहे हैं, तुमने ध्यान नहीं दिया? अपने घोंसले की रक्षा तो पक्षी भी करते हैं।" फिर तुम........ इस पर्णकुटी की रक्षा नहीं करोगे तो क्या होगा? बोलो कुमार ...जब कुलपति के ऐसा कहने पर प्रभु कुछ नहीं बोले तो कुलपति चले गये ।
कुलपति के जाने पर प्रभु चिन्तन करते हैं- ओह! मेरे कारण कुलपति को और तापसों को पीड़ा हो रही है, सन्ताप हो रहा है, तब ऐसे स्थान पर रहने से क्या लाभ? क्यों मैं स्वयं के लिए दूसरों का कष्टकारक बनूं। यद्यपि चातुर्मास लग चुका है । पन्द्रह दिन व्यतीत हो गये हैं तथापि शय्यादाता को कष्ट पहुंचा कर यहां रहने का औचित्य नहीं है। अतः मुझे यहां से विहार कर देना चाहिए। ऐसा अनुचिन्तन कर प्रभु ने वहां से विहार कर दिया " । यह एक भवितव्यता योग था कि प्रथम चातुर्मास में ही भगवान को विहार करना पड़ा। यद्यपि स्थविरकल्पियों को चार महीने एक ही स्थान पर रहने की अनुज्ञा दी है तथापि प्रभु तो कल्पातीत थे, उन पर कल्प की कोई मर्यादा लागू नहीं होती । शास्त्र में उल्लेख है कि केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी, 14 पूर्वधर, 10 पूर्वधर, ये कल्पातीत होते हैं। अपने ज्ञान में जैसा देखते हैं, वैसा करते हैं परन्तु अनिवार्य रूप से इन पर कल्प की कोई मर्यादा लागू नहीं होती । मध्य के बाईस तीर्थंकरों के साधु और जिनकल्पी साधु चातुर्मास के प्रथम 50 दिनों तक विहार करते हैं लेकिन चातुर्मास के शेष 70 दिनों तक एक स्थान पर रहते हैं । वे 70 दिनों में विहार नहीं करते । 21
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भगवान ने स्व-चिन्तन से निर्णय लिया कि मुझे अब यहां नहीं रहना है अतएव पन्द्रह दिन व्यतीत होने पर वहां से विहार कर दिया। उस समय प्रभु ने पांच प्रतिज्ञाएं धारण कीं -
1.
अप्रीतिकर स्थान में नहीं रहूंगा ।
2.
3.
4.
5.
सदा ध्यान में रहूंगा ।
(प्रायः) मौन रहूंगा।
हाथ में ही भोजन करूंगा ।
गृहस्थों का विनय नहीं करूंगा 122
यद्यपि इन प्रतिज्ञाओं को धारण करने के पूर्व भी प्रभु ने कभी