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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 107 पूछा- भाई ! मैं तुम्हें मेरे बैलों की निगरानी सौंपके गया था। बैल कहां चले गये? क्या तुमने ध्यान नहीं रखा? भगवान मौन रहे । ग्वाले को कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला तो सोचा - इनके भरोसे बैठे रहना ठीक नहीं । यह बोले, नहीं बोले, मुझे बैल ढूंढना चाहिए । थका-हारा वह ग्वाला बैल ढूंढने गया । पूर्व - पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सभी दिशाओं में खोजने लगा लेकिन पूरी रात ढूंढने पर भी बैल नहीं मिले। आवेश का पारा निरन्तर वृद्धिंगत हो रहा था। सोचने लगा कि मेरे बैल चारों दिशाओं में नहीं मिले। हो न हो, उस व्यक्ति ने ही चुराये होंगे जिसको मैं सम्हलाकर आया था। जाता हूं उसके पास । वह ग्वाला आवेशयुक्त होकर, क्रोध में नेत्र लाल करके, फड़कते होंठों से, जहां प्रभु महावीर ध्यानस्थ थे, वहां आया । आते ही देखता है, ओह! मेरा अनुमान कितना सही निकला । ये बैल यहां चर रहे हैं। इसी व्यक्ति ने रात्रि में बैल छिपा दिये थे । इसे क्या मालूम था कि मैं अभी आऊँगा । लेकिन सच्चाई प्रकट होकर रहती है। इस व्यक्ति को चोरी की सजा देनी चाहिए ताकि भविष्य में यह चोरी नहीं करे। ऐसा सोचकर वह ग्वाला प्रभु महावीर की ओर बैल बांधने की रस्सी लेकर उन्हें मारने दौड़ता है । ' - संयोगतः उसी समय शक्रेन्द अवधिज्ञान से उपयोग लगाकर प्रभु की साधुचर्या का अवलोकन करते हैं। अवलोकन करते ही वे हतप्रभ रह जाते हैं। अहो ! एक ग्वाला प्रभु को मारने जा रहा है। वे तुरन्त प्रभु के पास उपस्थित होते हैं। ग्वाला प्रभु को मारने के लिए रज्जुसहित हाथ उठाता है । लेकिन शक्रेन्द्र के प्रभाव से हाथ ऊपर का ऊपर ही रह जाता है और शक्रेन्द्र उसे ललकारते हैं - धिक्कार है तुझे ! शर्म नहीं आती! नहीं जानता ये कौन हैं? राजा सिद्धार्थ के पुत्र राजकुमार महावीर हैं । हट यहां से, कभी ऐसा कार्य मत करना । ग्वाला सुनकर मौन रहता है । वह वहां से चला जाता है । शक्रेन्द्र प्रभु के पास आते हैं। तीन बार आदक्षिणा- प्रदक्षिणा करके प्रभु चरणों में निवेदन करते हैं भगवन् ! संयमीय जीवन-सूर्य का प्रथम प्रभात ! प्रथम प्रभात का प्रारम्भ ही उपसर्ग से हुआ है। भंते! आपके साधनाकाल के बारह वर्षों में घोरातिघोर उपसर्ग आने वाले हैं। अतः आपके उन
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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