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अपरितम तीर्थकर महावीर - 97
वर्धमान- आपकी कृपा से ठीक हूं। एक विशेष प्रयोजन से आपके पास आया हूं।
नन्दीवर्धन-- बोलो! क्या प्रयोजन है? वर्धमान- मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण हो गयी। अब मैं...... नन्दीवर्धन- कौनसी प्रतिज्ञा? कैसी प्रतिज्ञा? कब पूर्ण हुई?
वर्धमान- भैया, मैंने माता-पिता के अपूर्व वात्सल्य से अनुशाणित हो, गर्भस्थ अवस्था में प्रतिज्ञा की थी कि जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे तब तक संयम ग्रहण नहीं करूंगा। अब मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण हुई । मैं संयम मार्ग पर आरूढ होना चाहता हूं।
नन्दीवर्धन- ऐं! यह क्या बोल रहे हो? माता-पिता के चले जाने से शरीर पहले से ही निष्प्राणवत हो रहा है। अभी तो उनके दुःख का भी अविस्मरण है। फिर तुम्हारे......... जाने से तो शरीर में प्राणों का टिकना मुश्किल होगा।
वर्धमान- तब क्या करूं? नन्दीवर्धन- अभी संयम मार्ग की अनुज्ञा नहीं दे सकता। वर्धमान- तब फिर कब देंगे? नन्दीवर्धन- दो साल तो नहीं दूंगा।
वर्धमान- दो साल......... दो साल तो घर में रहना कठिन है। तब इन दो सालो में......
नन्दीवर्धन- क्या करोगे दो सालों में? पर्धमान- घर में रहकर भी साधुदत जीवन का पालन करूंगा। नन्दीवर्धन- घर में रहकर साधुक्त..........!
दमान- हा भैया! घर में रहकर भी सहाचर्य का पालन करूंगा। स्नान. अलकार. शरीर की विनया नहीं करूंगा ! अचित
जल से जीन-निवार कलंगा। मी:- की कोर या पदकार मौन हो जाते है।
-- करतो हर-- सहा लाता हूं:
र जाते है. गोदा के पास ! मोटा अपने १. सा ग र को दो ... .... आइये.