________________
यज्ञ में बहुत से पशुओं की बलि दी जाने वाली थी । मार्ग में इन्द्रभूति को बहुत से लोग समूह बनाकर जाते हुए दिखाई पड़े । इन्द्रभूति ने उन मनुष्यों को देखकर मन-ही-मन सोचा, अवश्य ये लोग उनके यज्ञ में ही सम्मिलित होने जा रहे हैं। पर जब वे यज्ञ-स्थान पर पहुंचे तो वहां उन्हें बहुत ही कम लोग दिखाई पड़े। वे आश्चर्यान्वित हो उठे । उन्होंने उन मनुष्यों के सम्बन्ध में पूछा, जो 'समूह के रूप में जा रहे थे ।
इन्द्रभूति को बताया गया कि वे सभी भगवान महावीर का उपदेश सुनने के लिए गए हैं। भगवान महावीर का उपदेश सुनने के लिए ! - इन्द्रभूति चकित हो उठे । वह क्रोधावेश में आकर सोचने लगे - 'भगवान महावीर ! अवश्य वह कोई पाखण्डी साधु होगा, अपने तंत्र-मन्त्र से अपना स्वार्थ साधन करता होगा ।'
इन्द्रभूति सोच ही रहे थे कि एक वृद्ध बटुक उनकी सेवा में उपस्थित हुए। वह बटुक कोई और नहीं, स्वयं देवराज इन्द्र ही थे । उन्होंने निवेदन किया- "महाराज, मैं आपके समक्ष अपनी एक समस्या लेकर उपस्थित हुआ हूं । मेरे गुरुदेव ने मुझे एक श्लोक सुनाया, पर वे उसकी व्याख्या करने के पूर्व ही ध्यानस्थ हो गए । आपसे प्रार्थना है कि आप उस श्लोक का अर्थ बताकर, उसकी व्याख्या करने की कृपा करें।"
इन्द्रभूति अहंकारपूर्ण वाणी में बोल उठे - " अवश्य, अवश्य, उस श्लोक को सुनाओ, मैं उसका अर्थ बताकर व्याख्या भी करूंगा ।"
इन्द्ररूपी बटुक ने अपने श्लोक को इन्द्रभूति के सामने
·
६८