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________________ धारणा जोरों से फैली हुई थी कि यज्ञ में पशुओं की बलि देने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं, अतः लोग अपने कल्याणार्थ बिना किसी हिचक के पशुओं की बलि दिया करते थे। उन दिनों इस बलि-प्रथा का प्रचारक सुमति शांडिल्य था। वह बड़ा प्रतापी था। समाज में उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। लोग उसकी पूजा किया करते थे और उसे सर्वोपरि मनुष्य मानते थे। सुमति की दो पत्नियां थीं। एक का नाम सुलक्षणा था और दूसरी का केसरी। सुलक्षणा से दो पुत्र पैदा हुए थे, जिनमें एक का नाम इन्द्रभूति था और दूसरे का अग्निभूति । केसरी से केवल एक ही पुत्र था और उसका नाम वायुभूति था। ये तीनों भाई बहुत बड़े विद्वान थे। शास्त्रों में उनकी अच्छी गति थी। पर वे विनयी नहीं थे । विद्या का अहंकार सदैव उनके हृदयों को उद्वेलित किया करता था। तीनों भाइयों में इन्द्रभूति सबसे अधिक सम्मानित थे। विद्या, बुद्धि और ज्ञान-तीनों क्षेत्रों में वे अपना अप्रतिम स्थान रखते थे। समाज में भी उन्हें सर्वाधिक कीति प्राप्त थी। समाज के छोटे-बड़े सभी उनके कथन को शास्त्र-वाक्य मानते थे। वह जिस ओर चलते थे, उसी ओर समाज भी चलता था। स्पष्ट था कि बिना इन्द्रभूति को पराभूत किए भगवान महावीर के अहिंसा-प्रचार का मार्ग सुगम नहीं हो सकता था। देवराज इन्द्र ने भगवान महावीर के अहिंसा-प्रचार-मार्ग को सुगम बनाने के लिए उपाय ढूंढ ही निकाला, और उन्होंने अपने उस उपाय को कार्य-रूप में भी परिणत कर दिया। एक दिन प्रभात का समय था, इन्द्रभूति कहीं यज्ञ कराने जा रहे थे। ८७
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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