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उठी, क्योंकि वह भगवान महावीर के अहिंसक विचारों से परिचित था। वह नहीं चाहता था कि भगवान महावीर उज्जैन में रहें । उसे डर था कि यदि भगवान महावीर उज्जैन में रहेंगे तो उज्जैन की जनता पर उनकी अमृत-वाणी का प्रभाव पड़ेगा और बलि-प्रथा बन्द हो जायगी। फलतः वह महावीर स्वामी पर भांति-भांति के अत्याचार करने लगा। उन्हें यंत्रणाओं की आग में जलाने लगा। पर क्या भगवान महावीर विचलित हुए । रुद्र की कोपज्वाला में भी उनकी हिंसा हिमालय की भांति दृढ़ बनी रही। आखिर उस रुद्र को भी हिंसा की दानवी प्रवृत्ति छोड़कर भगवान महावीर की शरण में जाना पड़ा। ___इस प्रकार भगवान महावीर साढ़े बारह वर्षों तक तप और साधना में संलग्न रहे । उनके तप और साधनाकाल की कुछ कहानियों का ऊपर उल्लेख किया गया है जिनसे भगवान महावीर के अटूट धैर्य, साहस, वीरता और पौरुष का चित्र पाठकों के सामने उपस्थित होता है। पर सच बात तो यह है कि भगवान महावीर को अपरिमित धैर्य, साहस और सहिष्णुता का साक्षात् अवतार कहना ही अधिक न्याय-संगत होगा। साधना-काल में गोपाल, शूलपाणि, यक्ष, संगमदेव, चण्ड कौशिक नाग,गोशालक और लाढ़ देश के अनार्यों ने उन्हें जो पीड़ाएं पहुंचाई और उन पीड़ाओं पर वीर महाप्रभु ने जिस क्षमा को प्रकट किया, वह अभूतपूर्व है। विश्व के इतिहास में ऐसे अनेक साधक हुए हैं, जिन्होंने बड़ी-बड़ी साधनाएं की हैं, किन्तु रोमांचकारी पीड़ाओं और यंत्रणाओं के मध्य हिमालय की भांति अडिग रहकर
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