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और अपने कटाक्ष का अभिनय करने लगीं। पर उनके कटाक्षों और अश्लीलतापूर्ण भावों का भगवान महावीर पर रंचमात्र भी प्रभाव न पड़ा। प्रभाव पड़ने की कौन कहे, भगवान महावीरने उनकी ओर दृष्टि उठाकर देखा तक नहीं। आखिर वे हारकर भगवान महावीर से अपने अपराधों के लिए बारम्बार क्षमा मांगने लगीं।
भगवान महावीर की यश-गाथा चारों ओर फैल गई। वह कामजयी के रूप में समादत किए जाने लगे।
भगवान महावीर उन दिनों कुमारग्राम में थे। एक दिन वह मार्ग में चले जा रहे थे । एक खेत के पास पहुंच बैठ गए और ध्यानस्थ हो गए। पास ही एक दूसरे खेत में एक कृषक हल चला रहा था। उसके हल में दो हृष्ठ-पुष्ट बैल जुते हुए थे।
हठात कृषक को भैसों के दुहने का स्मरण हो आया। वह अपने बैलों को भगवान महावीर की रखवाली में छोड़कर भैंसों को दुहने के लिए अपने घर चला गया। पर भगवान तो ध्यानस्थ थे। उन्हें क्या पता कि कौन कृषक और किसके बैल !
बल तो बल ठहरे ! वे कृषक के जाते ही इधर-उघर चले गए। कुछ देर बाद कृषक लौटा तो उसने महावीर भगवान से अपने बैलों के सम्बन्ध में पूछताछ की। पर वह क्या उत्तर देते ? वह तो मोन थे, ध्यानस्थ थे। कृषक व्याकुल हो उठा और अपने बैलों को खोजने लगा। पर उसके बैल न मिले। वह रातभर अपने बैलों की खोज में मारा-मारा फिरता
कृषक का नाम गोपाल था। प्रभात होने पर गोपाल फिर
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