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के-झुण्ड बनाकर चन्दना के दर्शनों के लिए दौड़ पड़े और उसके चरणों की धूलि अपने मस्तक पर लगाने लगे। ___ कौशाम्बी की राज-महीषी मृगावती को जब यह समाचार मिला, तो वह भी चन्दना के दर्शनार्थ उसके द्वार पर जा पहुंची। किन्तु उन्हें क्या पता था कि चन्दना कोई और नहीं, उनकी ही छोटी बहन है। उन्होंने जब चन्दना को देखा, तो उनकी आंखों में शोक और हर्ष के आंसू छलक आये। शोक के आंसू इसलिए कि चन्दना को राज-पुत्री होने पर भी दासी का जीवन व्यतीत करना पड़ा और हर्ष के आंसू इसलिए कि उसकी बहन चन्दना के हाथों से भगवान महावीर ने आहार ग्रहण किया था। वह बड़े आदर के साथ चन्दना को अपने राजभवन में ले गई। पर अब तो चन्दना ऐसे महान् सौभाग्य की अधिकारिणी बन गई थी कि उस पर धरती के नहीं, स्वर्ग के सौ-सौ राजभवन निछावर किये जा सकते थे। भगवान महावीर ने उस पर अनुकम्पा करके उसके जीवन को बहुत ऊंचा उठा दिया थाइतना ऊंचा कि उसकी ऊंचाई को स्पर्श करने में देवताओं का देवत्व भी अपने को असमर्थ पाता था।
भगवान महावीर गंगा की रेती से होकर जा रहे थे। उनके पैरों के चिह्न रेती पर पड़ते जा रहे थे। उन पगचिह्नों पर जब पुष्प नामक ज्योतिषी की दृष्टि पड़ी तो उसने उन्हें देखकर मन-ही-मन सोचा, ये पग-चिह्न जिस महापुरुष के हैं, वह अवश्य ही चक्रवर्ती सम्राट है । पुष्प उन चक्रवर्ती सम्राट के दर्शनार्थ आगे की ओर बढ़ने लगा। कुछ दूर जाने पर उसने भगवान महावीर को अशोक वृक्ष के नीचे खड़े देखा। वह