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चन्दना के साथ दासी का-सा कटु व्यवहार करने लगी, उसे अपने तीखे व्यवहार से उसके हृदय को दग्ध करने लगी। चन्दना करती तो क्या करतो? वह सब कुछ सहन करती हुई नगरसेठ के घर पड़ी रही।
उन दिनों भगवान कौशाम्बी में ही चातुर्मास व्यतीत कर कर रहे थे। एक दिन जब वह भोजन के लिए नगर की ओर चले, तो उन्होंने संकल्प किया कि आज वे उसी युवती के हाथ का भोजन ग्रहण करेंगे, जिसका सिर मुंडा हुआ होगा, जो पराधीनता के बन्धनों से जकड़ी हुई होगी और जिसके मुंह पर हंसी और आंखों में आंसू होंगे। यदि इस प्रकार की युवती के हाथों का भोजन न मिलेगा, तो फिर आज वह भोजन ग्रहण न करेंगे।
दोपहर का समय था। सारा कौशाम्बी नगर भगवान महावीर की जय-जयकार से गूंज उठा। नगर में एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक विद्युत्-तरंग की भांति समाचार गूंज उठा-"भगवान महावीर आहार के लिए आ रहे हैं।"
भगवान महावीर आहार के लिए नगर में घूमने लगे। द्वार-द्वार पर लोग भगवान महावीर की प्रतीक्षा करने लगे। चन्दना भो कोदों का भात लेकर भगवान की बाट देखने लगी।
भगवान महावीर बड़े-बड़े सेठों, अमीरों और नागरिकों के आहारों को छोड़ते हुए चन्दना के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने बड़े प्रेम से आहार के रूप में चन्दना का कोदों का भात ग्रहण किया। चन्दना धन्य हो गई। बड़े-बड़े सेठ, नागरिक और नृपति भी चन्दना के भाग्य की सराहना करने लगे। लोग झुण्ड
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