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इस प्रकार भगवान महावीर ने कामनाओं और विषयवासनाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए २८ गुणों के पालन को घोषणा की। उन्होंने अपनी इस घोषणा से मनुष्य ही नहीं, देवताओं को भी कम्पित कर दिया। क्योंकि इन गुणों के पालन की क्षमता मनुष्य में क्या, देवताओं में भी नहीं हो सकती। इसीलिए तो कहते हैं कि भगवान महावीर मानवों में सर्वोपरि मानव थे, देवताओं में सर्वोत्तम देवता थे।
भगवान महावीर ने इन गुणों का पालन किया । हिमालय के समान दृढ़ प्रतिज्ञा करके शीघ्र ही उपवास प्रारम्भ कर दिया। उनका यह उपवास ढाई दिनों का था। वह कुण्डलपुर के उस उद्यान को छोड़कर आगे चल पड़े और कुल्यपुर पहुंचे। कुल्यपुर में उन्होंने प्रथम भोजन ग्रहण किया। कुल्यपुर से वह आगे बढ़े, दशपुर पहुंचे। दशपुर से आगे बढ़ने पर भगवान महावीर ने सघन वनों और अरपदों का पथ ग्रहण किया। भगवान महावीर निरन्तर साढ़े बारह वर्षों तक वनों और अरण्यों में घूमघूमकर तप करते रहे । वह अपने तप के दिनों में किसी भी स्थान में तीन दिन से अधिक नहीं ठहरते थे। उन्होंने तप के दिनों में अगणित स्थानों की यात्राएं कीं, अगणित महामानवों से उनकी भेंट हुई और अगणित बार उनके सामने देव-विभूतियां प्रकट हुईं। भगवान महावीर के तप के दिनों का-साढ़े बारह वर्षों का इतिहास बड़ा ही अद्भुत, हृदय-द्रावक और प्रेरक
तप के दिनों में, जब वर्षा ऋतु आती थी, तो वे किसी स्थान में रहकर चातुर्मास व्यतीत किया करते थे। उन्होंने साढ़े बारह