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________________ निर्मल जल लहरा रहा था। आकाशनि मल था । चन्द्रमा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र पर स्थित था। महाराज सिद्धार्थ के घर में मंगल-वाद्य बज उठे, दिव्य ज्योति ने मनुष्य रूप में त्रिशलादेवी की गोद में जन्म लिया। धरती पुलकित हो उठो । स्वर्ग में भी आनन्द छा गया। महाराज सिद्धार्थ के राजभवन का तो कहना हो क्या-उसमें तो कोने-कोने से, अंग-अग से आनन्द और उल्लास का सागर उमड़ उठा था। भगवान महावीर के जन्म पर स्वयं देवताओं ने धरती पर आकर उनकी अभ्यर्थना की थी। स्वयं सोधर्म इन्द्र ने बाल-प्रभु को सुमेरु पर्वत पर ले जाकर, रत्नमयी पांड्रक शिला पर उनका अभिषेक किया था। जो भी हो, यह तो सर्वविदित है कि भगवान महावीर के जन्म की प्रसन्नता में महाराज सिद्धार्थ के सारे राज्य में आनन्द और उत्साह की लहर दौड़ गई थी। घरों को घी के दोपकों से आलोकित किया गया था। जेलों से बन्दी छोड़ दिए गए थे। दान-दक्षिणा से याचकों की झोलियां भर दी गई। पूरे दस दिन तक दान-दक्षिणा का क्रम चलता रहा, मंगल-वाद्य बजते रहे, मंगल-गोतों से आकाश गुंजित होता क्यों न हो, दिव्य-ज्योति साकार रूप में धरा पर अवतीर्ण हुई थी न!
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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