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________________ में ऐसा कोई प्रबल-प्रतापी नृपति नहीं था, जो सबको दबाकर एक सूत्र में पिरोता, न्याय और शान्ति के राज्य की स्थापना करता।" स्वयं जैन-धर्म के माननेवाले भी हीनावस्था को पहुंच गए थे। धर्म के नाम पर समाज में अनेक प्रकार के मत-मतान्तर फैले हुए थे । एक विद्वान् के मतानुसार उन दिनों समाज में तीन सौ तिरसठ मत-मतान्तर थे, जो जन-समुदाय को कसकर जकड़े हुए थे। लोगों का ध्यान आत्मा की ओर से हटकर, चमत्कारों और अलौकिक शक्ति-प्रदर्शनों की ओर केन्द्रित हो गया था। जो सबसे अधिक चमत्कारी होता, वही सबसे बड़ा जपी-तपी और साधु-महात्मा समझा जाता था। ऊपर के सामाजिक चित्रों से स्पष्ट हो जाता है कि महावीर स्वामी के आविर्भाव के पूर्व धरती पर चारों ओर पाप का धुआं उठ रहा था! मानव-समाज का दम इस विषले धुएं के प्रभाव से घुटता जा रहा था। जन-जन के अन्तर से 'रक्षा करो-रक्षा करो' की ध्वनि उठ रही थी । जनता की, धरती की इस करुण पुकार के प्रतिफलस्वरूप ही महावीर स्वामी का आविर्भाव हुआ। महावीर स्वामो ने धरती पर अवतरित होकर जनता के दुखों को दूर किया, पाप के धुएं को दूर करके एक नया आलोक फैलाया। उसी आलोक से तो आज मानव-समाज जगमगा रहा है, ज्योतित हो रहा है। ३७
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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