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________________ पवित्र आचरणों और दिव्य-ज्ञान की ज्योति से जन-जन के हृदय को आलोकित करते रहे। वह अपने आचरणों और देवोपम व्यवहारों से ही महान् बने । इतने महान् कि भगवत्ता के स्वर्ण सिंहासन पर आसीन हो गए । आज कोटि-कोटि मानव उन्हें वीतराग भगवान मानकर ही उनकी पूजा करते हैं, उनके पवित्र चरणों में अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं । भगवान महावीर का जन्म धरती पर लोक-कल्याण के लिए ही हुआ था। दूसरे शब्दों में, वह स्वयं ईश्वर के प्रतिरूप थे, ईश्वर थे। पर उन्होंने कभी अपनी भगवत्ता का प्रदर्शन नहीं किया, कभी अपने को भगवान नहीं कहा, कभी अपनी उन शक्तियों को प्रकट नहीं किया, जो उनके भीतर विद्यमान थीं । इसके प्रतिकूल वह कांटों की राह पर चलकर, यंत्रणाओं को सहते हुए सदा जीवन के लिए प्रशस्त राह बनाते रहे। उन्होंने कठिन से कठिन तप करके, कामनाओं - वासनाओं से युद्ध करके, आसक्तियों से संघर्ष करके लोक-कल्याण की एक ऐसी उज्ज्वल राह ढूंढ निकाली, जिस पर चलकर मनुष्य सचमुच वास्तविक सुख को प्राप्त कर सकता है, नैसर्गिक शान्ति का अनुपम रसास्वादन कर सकता है । वह सच्चे कर्मयोगी, महान् दार्शनिक, आत्मदृष्टा और जीवन क्षेत्र के अमर योद्धा थे । उनके नाम के साथ उनका 'महावीर' विशेषण इसीलिए उपयुक्त है। विश्व में बड़े-बड़े युद्धों के विजेता तो बहुत-से हुए हैं, किंतु वह कामनाओं और वासनाओं के युद्ध में अप्रतिम शौर्य प्रकट करके विजयी हुए और 'महावीर' कहलाए । भगवान महावीर जन्म से ही आत्मदृष्टा थे, पर वह अपनी २८
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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