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धर्म-ग्रंथ के नाम पर । यदि ऐसा होता तो जैन धर्म के उद्भव के काल के सम्बन्ध में कुछ कहा जा सकता था । वास्तव में जैन धर्म काल के घेरे से बाहर है । सुप्रसिद्ध पादरी राइस डेविड का मत है कि जब से यह पृथ्वी है, तभी से जैन धर्म भी विद्यमान है ।
जैन धर्म जिनों द्वारा उपदिष्ट धर्म है। जिनों को ही तीर्थंकर कहते हैं । संसार में इतिहास, काव्य और साहित्य के रूप में जो चिर-प्राचीन सामग्री उपलब्ध है, उस पर दृष्टि डालने से पता चलता है कि इस धरा धाम पर आदिकाल से जिन अर्थात् तीर्थकर होते आ रहे हैं । उन जिन तीर्थकरों ने समय-समय पर पृथ्वी पर अवतरित होकर उपदेश दिया है। सभी जिन तीर्थकरों के उपदेश एक ही मूल तत्त्व पर आधारित हैं । इस तथ्य को सामने रखकर जैन धर्म को पृथ्वी का आदि धर्म कहना न्यायसंगत ही होगा ।
तीर्थंकरों ने जिस धर्म को प्रसारित किया है, वह प्राणीमात्र के कल्याण का मार्ग दर्शाता है । काटि-कोटि मनुष्य आज भी उसके द्वारा अपने जीवन का पथ प्रशस्त कर रहे हैं। इसी प्रकार भविष्य में भी कोटि-कोटि मनुष्य इसके द्वारा अमरत्व की ओर बढ़ते रहेंगे । जब जीवन तमसाच्छन्न हो जाता है, धर्म का ह्रास होने लगता है, तभी कोई न कोई तीर्थंकर अवतरित होते हैं, और अपनी पवित्र और प्रेरक उपदेश-वाणियों से जन-जन के हृदय में धर्म की ज्योति प्रज्ज्वलित कर जाते है ।
जैन धर्म का यह चक्र अनादिकाल से चलता आ रहा है,
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