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है। यही अमृत है, यही सूर्य है, यही दिव्य-प्रकाश है। यही वह अमृत है, जिसकी प्यास युग-युगों से मनुष्य के भीतर रही है और रहेगी। इसी अमृत को प्राप्त करने की, पीने की आचार्यों और मनीषियों ने सलाह दी है।
वह देश, समाज और व्यक्ति धन्य है जो अहिंसा, संयम और तप से अन्वित धर्म के अमृत को पीने के लिए उत्कंठित रहता है।