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________________ सागर उमड़ पड़ा । पावापुर के समस्त स्त्री-पुरुषों ने भगवान के स्वागत में अपने प्राण-कुसुम बिछा दिए। क्यों न हो, निर्वाण के देवता ने अपने पवित्र आगमन से उन्हें कृतकृत्य किया था न! ___ भगवान महावीर उद्यान में विराजमान हुए । अपनी अमृतवाणी से पावापुर के स्त्री-पुरुषों के हृदय में आनन्द-सिंधु को मथने लगे। भगवान के सम्पूर्ण कार्य निःशेष हो चुके थे। उनका आविर्भाव जिस उद्देश्य से धरती पर हुआ था, वह पूर्ण हो चुका था। पावापुर के स्त्री-पुरुषों को वह अन्तिम चूंट पिलाकर, उनके मानव-जीवन को सार्थक बना रहे थे। ईसवी पूर्व ५२७ कार्तिक कृष्णा की चतुर्दशी समाप्त हो रही थी। मंगल अपने प्रारम्भ चरण पर था। रात्रि का अवसान होने को था। पौ फट रही थी। चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में था। भगवान महावीर सबसे पृथक्, एकान्त में ध्यानमग्न थे। सहसा उनके भीतर से प्रकाश निकला और चारों ओर फेलकर, महाआकाश में विलीन हो गया। वह अपने दिव्य-ज्ञान की अतुल सम्पत्ति धरती पर छोड़कर दिव्य-लोक को चले गए। पावापुर उसी दिन से पवित्र तीर्थ बन गया । भगवान महावीर के भक्तों और अनुयायियों ने उसे 'अपापनगरी' के नये नाम से अलंकृत किया है। सचमुच 'अपापनगरी' अपापनगरी ही है। जो भी अपापनगरी में जाकर भगवान महावीर के दिव्य चरण-चिह्नों के दर्शन करता है, वह सचमुच पापों और क्लेशों से मुक्त हो जाता है। भगवान के दिव्य चरण-चिह्न आज भी अपापनगरी के भव्य मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। १४३
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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