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________________ था। उनसे लाभ अवश्य हुआ, पर साथ ही उनके द्वारा विकारों की सृष्टि भी हुई। यही कारण है कि मनुष्य को जो सुख और शान्ति मिलनी चाहिए, न मिली और मनुष्य व्याकुल-काव्याकुल बना रहा। भगवान महावीर ने अपनी क्रान्ति के द्वारा मनुष्य के मन की व्याकुलता को सदा के लिए दूर कर दिया । उन्होंने अपनी क्रान्ति के द्वारा मनुष्य के अन्तर्मन को स्वच्छ और निर्मल बनाने का स्तुत्य प्रयत्न किया । वह जाति, सम्प्रदाय और वर्ग की सीमा से बाहर तो निकले ही, देशों के सीमा-बन्धनों को तोड़कर उनसे भी बाहर जा खड़े हुए। उनके सामने केवल मनुष्य था, केवल मानवता थी। उन्होंने मनुष्य के भीतर प्रविष्ट होकर उसकी मानवता को जगाया, विषमताओं की खाइयों को पाटकर सबको समान रूप से एक सूत्र में गूंथा। उनके पास जो अनन्त था, उन्होंने सब कुछ सब के लिए समान रूप से लुटा दिया। वह धन्य थे, धन्य था उनका वह अवतरण। घरती उनके उस पावन अवतरण को स्मरण करके युगों तक पुलकित होती रहेगी। भगवान महावीर सम्पूर्ण मानव-समाज को तीस वर्षों तक ज्ञानामृत पिलाने के पश्चात बिहार प्रदेश के पावापुर नामक स्थान में पहुंचे। उन दिनों पावापुर में हस्तिपाल का राज्य था। भगवान के आगमन से हस्तिपाल की रग-रग में हर्ष का सागर उमड़ पड़ा । हर्ष का सागर उमड़ पड़ा उस नगर के हृदय में जहां भगवान का आगमन हुआ था। कोना-कोना सज उठा, घरघर में मंगल-गान हुए, द्वार-द्वार पर मंगल-कलश रखे गए। जन-जन के हृदय से आनन्द का स्रोत फूट पड़ा, उल्लास का १४२
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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