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________________ उत्तर-जीवों की रक्षा करने से, मुनियों को साताकारी भोजन-जल देने से। प्रश्न-हे पूज्य, किसी मनुष्य को उसके किस कर्म के कारण एक पैसे की भी आय नहीं होती? उत्तर-अपनी आय का अहंकार करने से, दूसरों की उन्नति को देखकर जलने से। प्रश्न-हे पूज्य, शरीर में प्रत्यक्ष रूप से कोई रोग न होने पर भी मनुष्य क्यों अनेक प्रकार के दुखों से दुखित रहता है ? उत्तर-रिश्वत लेकर सत्य को असत्य सिद्ध करने से। भगवान महावीर की वाणियों और उपदेशों में अमृत बहता है। कितने ही उनके उपदेशामृत-वचनामृत ही पीकर तृप्त हो गए, कितने ही तृप्त हो रहे हैं और आगे भी होंगे। आपकी तृप्ति के लिए भी भगवान की कुछ वाणियों का संकलन यहां किया जा रहा है : जीवन और सांसारिक सुख-समृद्धि के लिए धर्माचरण मत करो, पूजा-प्रतिष्ठा के लिए धर्माचरण मत करो। केवल आत्मा को पवित्र बनाने के लिए धर्माचरण करो। ____ मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसी के अनुसार उसे दुख-सुख भी भोगने पड़ते हैं। अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है। किसी को शत्रु मत समझो। वस्तुतः कोई शत्रु है ही नहीं। अपना दृढ़ विश्वास ही जिस किसी के प्रति होता है, मित्र है। उसके विपरीत अविश्वास ही शत्रु है। सबको समान दृष्टि से देखो, सर्वत्र मित्र ही मित्र मिलेंगे। तू दूसरों को अपना शत्रु १३६
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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