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________________ कभी प्रयत्न करे। ४. स्त्रियों को राग-पूर्वक देखना, उनकी अभिलाषा करना, उनका चिन्तन करना, उनका कीर्तन आदि कार्य ब्रह्मचारी पुरुष को कदापि नहीं करने चाहिए। ब्रह्मचर्य में सदा रत रहने की इच्छा रखने वाले पुरुष के लिए यह नियम अत्यन्त हितकर है और उत्तम ध्यान प्राप्त करने में सहायक है। ५. ब्रह्मचर्य में अनुरक्त भिक्षु को मन में वषयिक आनन्द पैदा करने वाली तथा काय-भोग की आसक्ति बढ़ाने वाली स्त्रीकथा को छोड़ देना चाहिए। ६. ब्रह्मचर्य-रत भिक्षु को स्त्रियों के साथ बातचीत करना और उनसे बार-बार परिचय प्राप्त करना सदा के लिए छोड़ देना चाहिए। ७. ब्रह्मचर्य-रत भिक्षु स्त्रियों के पूर्वानुभूत हास्य, क्रीड़ा, रति, दर्प आदि कार्यों को कभी स्मरण न करे । ८. ब्रह्मचर्य-रत भिक्षुओं को शीघ्र ही वासनावर्धक, पुष्टिकारक भोजन-पान का सदा के लिए परित्याग कर देना चाहिए। ___६. जैसे बहुत ज्यादा इंधन वाले जंगल में पवन से उत्तेजित दावाग्नि शान्त नहीं होती, उसी तरह मर्यादा से अधिक भोजन करने वाले ब्रह्मचारी की इन्द्रियाग्नि भी शान्त नहीं होती । अधिक भोजन किसी के लिए हितकर नहीं होता। १०. ब्रह्मचर्य-रत भिक्षु को श्रृंगार के लिए शरीर की शोभा और सजावट का कोई भी शृंगारी काम नहीं करना चाहिए। १२८
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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