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________________ रहेगा।" __ इस सम्बन्ध में तीर्थंकर महावीर का कथन मनन करने योग्य है-"जो जिन-अर्हन्त भगवन्त भूतकाल में हुए, वर्तमान काल में हैं, भविष्य में होंगे, उन सबका एक ही शाश्वत धर्म होगा, एक हो ध्रुव प्ररूपणा होगी और वह यह कि 'सव्वे जीवा न हन्तव्वा' अर्थात् 'किसी जीव की हिंसा मत करो, किसी को मत सताओ, न किसी के पराधीन बनो और न किसी को अधीन बनाओ।" __ वैदिक मन्त्रों और बौद्ध-ग्रन्थों में भी धर्म के सम्बन्ध में इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए गए हैं। ऋग्वेद में धर्म के सम्बन्ध में कहा गया है-"सत् एक है। मनीषी और आचार्य उसका प्रतिपादन विभिन्न प्रकारों से करते हैं।" महात्मा बुद्ध ने एक स्थान पर अपने भिक्षुओं को उपदेशित करते हुए कहा है-"भिक्षुओ, मैंने एक प्राचीन राह देखी है। एक ऐसा मार्ग, जो प्राचीन काल के अर्हन्तों द्वारा अपनाया गया था, मैं उसी पर चला और चलते हुए कई तत्त्वों का रहस्य प्राप्त हुआ।" ___इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि धर्म शाश्वत है, सत्य है। धर्म एक है, आदिकाल से है-सदा से है और सदा रहेगा। धर्म में विभिन्नताएं उसकी व्याख्याओं के ही कारण उत्पन्न हुई हैं। इससे यह भी निष्कर्ष निकलता है कि संसार के सभी धर्म-प्रवाह धर्म के अनुसंधानों के कारण ही उद्भूत हुए हैं। अतः यह कहना असंगत नहीं होगा कि संसार के सभी धर्म 'धर्म' नहीं, धर्म की व्याख्याएं हैं; सत्य नहीं, सत्य के अनुसधान हैं ।
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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