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महत्त्व है। पर अस्तेय क्या है ? यह एक प्रश्न है। 'नारदस्मृति' में इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया गया है-'सुप्त, पागल और असतर्क मनुष्य से विविध प्रयोगों द्वारा छल करके किसी भी चीज़ को ले लेना चोरी है। श्रीमद्भागवत में इसी बात को इन शब्दों में प्रकट किया गया है-'मनुष्यों का अधिकार या हक उतने ही धन पर है जितने से उनका पेट भर जाए। इससे अधिक को जो अपना मानते हैं वे चोर हैं और उन्हें दण्ड मिलना चाहिए।'
साधारण रूप में किसी भी वस्तु, जड़-चेतन, प्राणी-पदार्थ के स्वत्व-अधिकार का हरण कर लेना स्तेय है। स्तेय का अर्थ है चोरी, और चोरी न करने का नाम अस्तेय है । चोरी कई प्रकार की होती है, जैसे प्रजा के अधिकारों का हरण करना, प्रजा पर अनुचित कर लगाकर स्वार्थ-साधन करना, न्यायाधीशों का उत्कोच लेकर अन्याय करना, कर्तव्य-पालन में प्रमाद करना, अवैध कार्य करने वालों की सहायता करना, मजदूरों को उचित मजदूरी न देना, अच्छी वस्तु के दाम लेकर घटिया वस्तु देना, किसी एक चीज़ में दूसरी चीज़ मिलाकर देना, चोरी का माल खरीदना, बात कहकर पलट जाना, झूठे समाचार गढ़कर दूसरों को धोखा देना और अधिक ब्याज लेकर गरीबों की सम्पत्ति का अपहरण करना । ये सभी काम चोरी के अन्तर्गत आते हैं। जो लोग इस प्रकार के कार्य करते हैं या इस प्रकार के कार्यों को करने में प्रोत्साहन देते हैं, उनकी आत्मा का विकास तो होता ही नहीं, वे समाज और देश की सुख-शान्ति के मार्ग में कांटे बिछाते हैं।
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