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________________ गई। लोग झुण्ड-के-झुण्ड वारिषेण के दर्शनार्थ उमड़ पड़े। श्रणिक बिम्बसार भी वारिषेण के पास उपस्थित हुए। वारिषेण के तेजोदीप्त मुखमण्डल को देखकर वे विमुग्ध हो गए। श्रेणिक बिम्बसार वारिषेण से बोल उठे-"बेटा, मैं पहले हो जानता था कि तुम निरपराध हो । पर मैं क्या करता? मैं न्याय के आसन पर था, अपने कर्तव्य से विवश था। भूल जाओ सारी बातें। चलो, अव घर लौट चलो।" पर वारिषेण लौटकर घर न गए। उन्होंने उत्तर दिया"घर ! कौन-सा घर ! मेरा कोई घर नहीं। न मैं किसी का पुत्र हूं और न कोई मेरा पिता है। ये लोकिक सम्बन्ध, यह जगत सब कुछ प्रपंच है, सब कुछ नश्वर है । मैं अब सब कुछ छोड़कर भगवान महावीर की शरण में जाऊंगा और मुनिजीवन व्यतीत करूंगा।" श्रेणिक बिम्बसार ने वारिषेण के विचारों को सुनकर अत्यन्त प्रसन्नता प्रकट की। वारिषेण अपने माता-पिता को प्रणाम करके भगवान महावीर की शरण में गए और उनसे दीक्षा लेकर मुनि-जीवन व्यतीत करने लगे। भगवान महावीर के संघ में लाखों स्त्रियां भी थीं। स्त्रियों के लिए पृथक् संघ था, और उस संघ का नाम 'आजिका-संघ' था। 'आजिका संघ' की कई स्त्रियों ने तप और साधना के क्षेत्र में अधिक सुख्याति प्राप्त की थी। इस प्रकार की स्त्रियों में राजकुमारी चन्दना, देवानन्दा और भद्रा का नाम अत्यधिक उल्लेखनीय है। १०८
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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