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________________ स्वर्णहार फेंक कर चलता बना। शहर कोतवाल भी कुछ क्षणों के पश्चात वारिषेण के पास जा पहुंचा। वारिषेण ध्यान में मग्न थे, पर स्वर्णहार उनके पास ही पड़ा था। कोतवाल ने स्वर्णहार उठा लिया। साथ ही उसने वारिषेण को भी बन्दी बना लिया। उसने सोचा, अवश्य उन्होंने ही स्वर्णहार को चोरी की है और अब अपनी चोरी को छिपाने के लिए तपस्या का ढोंग रचे हुए हैं। ___ कोतवाल ने स्वर्णहार के साथ वारिषेण को न्यायालय में उपस्थित किया । श्रेणिक बिम्बसार स्वयं न्याय के आसन पर विराजमान थे। महारानी के स्वर्णहार के चोर के रूप में अपने ही पुत्र को देखकर श्रेणिक बिम्बसार विचारमग्न हो उठे। वह सोचने लगे, क्या यह सम्भव हो सकता है कि वारिषेण जैसा निलिप्त राजकुमार अपनी माता के स्वर्णहार की चोरी करे ? पर जितनी गवाहियां थीं, वे सब वारिषेण के विरुद्ध थीं। सभी गवाहियों से यही सिद्ध होता था कि वारिषेण ने ही स्वर्णहार चुराया है। फलतः श्रेणिक बिम्बसार को विवश होकर वारिषेण को चोरी के अपराध में मृत्युदण्ड देना पड़ा। __ मृत्युदण्ड के लिए वारिषेण को चाण्डालों के सिपुर्द कर दिया गया। चाण्डाल वारिषेण को लेकर श्मशान में पहुंचे। उन्होंने वारिषेण को वघ-भूमि पर खड़ा करके उन पर शस्त्र-प्रहार करना चाहा। पर यह क्या? चाण्डालों के शस्त्र ही नहीं उठ रहे थे। चाण्डालों ने बड़ा प्रयत्न किया, पर उनके शस्त्र वारिषेण पर न उठे। सहसा वारिषेण पर आकाश से पुष्पों की बरसा होने लगी। चारों ओर यह खबर बिजली की तरह फैल १०७
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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