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________________ उठाकर भीनहीं देखता । मेघकुमार के मन में विचारों की आंधी उठ पड़ी। उनके हृदय में फिर वही राग, द्वेष और अमर्ष के भाव जागृत हो उठे। उन्होंने मन-ही-मन सोचा, 'वह अब यहां न रहेंगे। भगवान से आज्ञा लेकर अपने घर लौट जाएंगे।' मेघकुमार भगवान महावीर की सेवा में उपस्थित हुए। सर्वज्ञ और अन्तर्यामी भगवान ने बिना बताए ही उनके अन्तर् को झांककर देख लिया। भगवान स्वयं ही बोल उठे, "मेघकुमार, तुम इन लोगों के व्यवहार से उदासीन होकर घर जाना चाहते हो, पर तुम घर क्यों जाना चाहते हो, मेघकुमार? क्या इसलिए कि तुम्हारे सोने का स्थान सबसे अन्त में, द्वार के पास है ? क्या इसलिए कि वे पूर्व को भांति तुम्हारे प्रति आदर का भाव नहीं प्रकट करते और तुम्हारी ओर से उदासीन रहते हैं ?" मेघकुमार उत्तर देते तो क्या ? भगवान महावीर के सम्मुख उनका मस्तक नत हो गया। स्पष्ट था कि भगवान महावीर के एक-एक शब्द से मेघकुमार अपनी सहमति प्रकट कर रहे थे। भगवान महावीर पुनः बोल उठे, "वत्स, वे तुम्हारे साथी हैं, साधना-पथ में तुम्हारे सहयात्री हैं। साधना-पथ में यह आवश्यक होता है कि कोई किसी से बातचीत न करे। मौन साधना-व्रती का सबसे बड़ा बल है। मौन से हृदय के भीतर एक ऐसी आग उत्पन्न होती है, जिसमें मन की कलुषता जलकर भस्म हो जाती है । वे लोग तुम्हारे प्रति उदासीन इसलिए रहते हैं कि तुम अपने हृदय में समभाव को स्थिर रख सको। तुमने
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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