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के कारण, दूसरे के आधार पर ही है। यदि एक का नाश हो जाय तो दूसरा निरर्थक बन जावेगा और बाद मे उग्रकी आवश्यकता, उपयोगिता या अस्तित्व कुछ भी न रहेगा।
अनेकातवाद का आश्रय लेकर गभीरता और गहराई से इस बात पर मोच-विचार किया जाय तो तुरन्त ही हमारी समझ मे आ जाएगा कि सत् और असत् भिन्न दिखाई पड़ते हुए भी भिन्न नहीं है । सत् के विना असत् का अस्तित्व असभव है और ठीक उसी तरह असत् के विना मत् का। अर्थात् आपस मे विरोधी दिन्वाई पड़ने वाले ये तत्त्व,अन्योन्याश्रित होने के कारण, तत्वत दोनो एक तत्त्व के दो स्वरूप है । अनेकात दृष्टि से देखा जाय तो ये दोनो भिन्न भी है और अभिन्न भी। ___ ठीक उमी तरह, 'नित्य-अनित्य', धर्म-अधर्म' 'एक-अनेक' आदि सभी,परस्पर विरोधी गुणधर्म होते हुए भी वास्तव मे एक ही है। समस्त स्प से एक ही है । इन तीनो युग्मो मे दो मे से एक को आप दूर करेंगे तो दूसरे का अस्तित्व Automatically स्वत. मिट जाता है। इस बात को ठीक तरह से स्वीकार कर यदि हम आगे चले तो व्यवहार में अनेक कठिनाइयो का जो सामना करना पडता है उनका प्रत आ जाय ।
प्रकाश और अधकार इन दो तत्त्वो की हम बात करे। यो देखा जाय तो ये दोनो तत्व भिन्न है। इन दोनो का कार्य एक दूसरे का विरोधी है । अव यदि कोई यह कहे कि प्रकाश मे अधकार भी है और अधकार मे प्रकाश भी,तथा इन दोनो बातो को मिलाकर यो कहे कि एक ही चीज मे प्रकाश तथा अधकार