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यदि किसी को इस विषय में कोई सन्देह हो या ये सब बाते गलत मालूम होती हो तो चुप रहने के बजाय कम से कम अपनी मान्यता सच्ची है ऐसा प्रमाणित करने की दृष्टि से भी इस विषय की गहराई में उतरे, इसका अध्ययन करे तो उन्हें जो निर्णय Conclusions प्राप्त होगे वे ही इन बातो को सत्यता की प्रतीति करवायेंगे । यहाँ इम पुस्तक मे जो निर्णय निकाले गये है उनकी सत्यता के विषय मे फिर कोई सन्देह न रहेगा ।
धर्म और तत्त्वज्ञान विषयक विचार करते करते तथा अपने जीवन को सफलता पूर्वक मार्गदर्शन देने के लिये यावश्यक तत्त्वज्ञान को पसन्दगी करते-करते ग्रव हम इस तत्त्वज्ञान के समीप ग्रा पहुंचे जो 'अनेकातवाद' के नाम से प्रसिद्ध है ।
हाँ तो चलिये, श्रव इस एकान्तवाद के विषय मे हम अधिक जानकारी प्राप्त करे ।
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antaवाद की नावारण जानकारी तो पिछले प्रकरण मे चापको दी गई है । इस शब्द को हमने अनेक + अत ऐसे दो शब्दो का बना हुआ माना है । इसमें दो के बजाय तीन शब्द भी हैं । ग्रन्+एक+श्रत अर्थात् जिसका एक प्रत नही अर्थात् अनंत है उसका नाम अनेकात । यह अनेकातवाद एक | रमणीय तत्त्वज्ञान है |
किमी भी चीज के बारे मे निर्णय करने से पहले हमें उसके अलग-अलग पहलुओ की प्रोर तथा उसकी अनेक सीमा की ओर दृष्टिपात करना पडेगा । यह बात अब हमारी समझ मे ठीक ग्रा गई है ।