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जैन दार्शनिको के प्रमाणित अभिप्राय के अनुसार भिन्न-भिन्न दर्शनो की परिस्थिति निम्नलिखित है ।
(१) अद्वैत वेदात, और साख्य, 'संग्रह' नय पर रचित हैं ।
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(२) नेयायिक और वैशेषिक दर्शन, "नैगम' नय पर रचित है ।
(३) चार्वाक मत, सिर्फ 'व्यवहार नय' पर निर्भर है । (४) वौद्धमत, ऋजुसूत्र 'नय' का अनुसरण करता है । (५) भीमासकमत ' शव्दनय' के आधार पर बँधा हुआ है । (६) वैयाकररण- दर्शन, 'समभिरूढ नय' का आधार लिये चलता है।
( ७ ) इसके सिवा दूसरे कई Extremist उद्दाम तत्त्वज्ञान है वे सभी 'एवभूत नय' के ग्रनुसार चलते है ।
जव कि जैन दर्शन इन सातो 'नयो' के समूह रूप, एक विशाल महासागर सदृश है । 'नय' शीर्षक प्रकरण मे हम आगे प्रत्येक 'नय' के बारे मे अधिक चर्चा करेंगे ।
ऊपर जो बाते बताई गई है उनके समर्थन मे विशेष कुछ लिखने की ग्रावश्यकता नही । यदि हम अधिक विस्तार से लिखना चाहे तो लिखते-लिखते हजारो पन्नो के एक महाग्रन्थ की हमे रचना करनी पडेगी । इसलिये, जहाँ तक इस विपय का सम्बन्ध है, यहाँ पर हम इतना ही उल्लेख करेगे कि यदि किसी को इस विषय मे दिलचस्पी हो तो वे इस विपय का गहरा अध्ययन अवश्य करे। ताकि उन्हे बहुत कुछ जानने का तथा समझने का अवसर प्राप्त हो सके ।