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और अपराधी बनने का मार्ग शीघ्रता से खुल जाता है। और स्वार्थ-विवश व्यक्तियो को, आचारभ्रष्ट होने के कारण क्या बुरा परिणाम होगा, इसका ख्याल कदाचित ही आता है।
कुछ मध्यम कक्षा की बात करें तो प्राय यह देखा गया है कि समाज के उच्च वर्ग के प्रतिष्ठित लोग भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये किसी 'साहब' को रिश्वत, या अन्य मार्ग से खुश करने की कोशिश करते ही रहते है। यदि हमने विवेक खो दिया तो उमका क्या नतीजा आवेगा इस विषय में लोग कदाचित् ही विचार करते हैं। ___ इस विषय मे श्री भर्तृहरि ने अपने नीतिशतक के एक श्लोक मे गगा नदी का जो उदाहरण दिया है वह वास्तव में समझने योग्य है । इस श्लोक का तात्पर्य यह है -
"स्वर्ग से पतित हो, शिव जटा स्पर्श कर के, पर्वत से भूमि पर गिर, म्लान बन के, गगा चली क्षार जल-सिंधु मे यया,
विवेक खोने से पतन होता सर्वथा ।" इस एक उदाहरण द्वारा अमर योगीन्द्र भतृहरिजी ने कितने महत्व की बात कह दी है ? गगा नदी का स्वर्ग से । अवतरण तो एक रूपक की तरह से प्रस्तुत किया गया है
लेकिन आचारभ्रप्ट मनुप्यो का कितना वडा समूह हमारे यहाँ देखने को मिलता है।
अव हम एक दूसरे प्रकार के मनुष्य की कल्पना करे । विचार का जहाँ तक सम्बन्ध है, वह मनुष्य पूर्णतया 'अहिसा'