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प्रेरित नहीं होता । अनेक बार वह Instinctive अर्थात् किसी वृत्ति से प्रेरित होकर और Impulsive अर्थात् किसी उत्तेजना से प्रेरित होकर, कुछ न कुछ आचरण कर ही लेता है । जिस मनुप्य मे, विचार करने की आदत नही है वह बहुत बार विचारहीन कहा जाने वाला कार्य कर बैठता है। और यदि उस कार्य का अपेक्षित या शुभ परिणाम निकले तो फिर अपने इस कार्य के लिये विचार करने की उसे कोई आवश्यकता ही नही, रहती । लेकिन यदि कही विपरीत परिणाम निकले, पश्चात्ताप करने या दुखी होने का समय आ जाय, तव अधिकतर वह अपनी विचारशक्ति का प्रयोग करता है।
। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य अपेक्षित या शुभ फल की प्राप्ति के लिये किसी भी प्राचरण पर विचार की-पूर्व विचार की आवश्यकता समझता है । वैसे ही, अच्छे आचरण रखने वाले मनुष्य के लिये भी वह आवश्यक बन जाता है । क्योकि, अच्छा वर्ताव करने वाले मनुष्य के विचार यदि अच्छे न हो तो समय बीतने पर उसका वर्ताव भी विगडने लगता है । और आखिर मे वह दुराचारी बन जाता है।
दूसरी ओर एक ऐसे मनुष्य की कल्पना करें जो निरतर शुभ विचार ही करते हुए भी वासनायो के शिकजे से टूटने मे असमर्थ होने के कारण वह अपना व्यवहार उल्टा ही करता है और दुराचार को अपनाता रहता है । लेकिन जब तक उसके विचार अच्छे रहेगे तब तक अपने दुगनार के प्रति उसका जागृत रहना तथा बुरी आदतो, दुर्बलतानो से