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समझ सके । इस बात को ध्यान में रखकर 'सप्तभगी' को समझने की यदि हम कोशिश करे तो कोई दिक्कत न होगी। ___ "प्रत्येक वस्तु 'अनेकधर्मात्मक' है।" यहाँ पर अनेकधर्मात्मक' का अर्थ है "प्रत्येक वस्तु के एक नही, बल्कि अनेक पहल होते हैं।" इससे भी एक विशेष याद रखने तथा समझने योग्य बात यह है कि "इन अनेक धर्मो मे परस्पर विरोधी गुण धर्म भी होते हैं।" ___ इस विषय मे विशेप जानकारी हम आगे प्राप्त करेगे। इस समय तो जिस 'सप्तभगी' का उत्लेख किया गया है उसका ही निरूपण करेगे।
(१) अस्ति अर्थात् 'है'। (२) नास्ति अर्थात् 'नही है। (३) अस्ति नास्ति । अर्थात् 'हे' प्रोर 'नही है । (४) अवक्तव्यम् अर्थात् (शब्दो द्वारा) जिसका वर्णन
न किया जा सके। (५) अस्ति अवक्तव्यम् । अर्थात् 'है लेकिन अवर्णनीय है'। (६) नास्ति अवक्तव्यम् अर्थात् 'नही है, लेकिन
अवर्णनीय है'। (७) अस्ति नास्ति अवक्तव्यम् अर्थात् 'हे और नही है, ___ लेकिन अवर्णनीय है।
ऊपर बतलाये गये इन सात पदो मे ‘स्यात' और 'एव' ऐसे दो शब्द प्रत्येक के आगे पीछे लगाये जाते है । इन दो शब्दो का अर्थ "(स्यात्) एक विशेष प्रकार से, (एव) निश्चित" होता है । इस विषय की अधिक चर्चा हम एक विशेप प्रकरण