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५४ (ख) पर्यायाथिक.-वस्तु के विशेष रूप की जो जानकारी दे (Specific)|
'नय' के सात नाम (भेद) इस प्रकार है(१) नैगम । (२) सग्रह। (३) व्यवहार। (४) ऋजुसूत्र। (५) शब्द। (६) समभिरूढ । (७) एवभूत ।
उपरोक्त सात में से प्रथम तीन द्रव्याथिक-विभाग में प्राते है और बाकी के चार 'नय' पर्यायाथिक विभाग मे आते है। इन सातो के विषय मे अधिक विचार आगे करेगे। ये सातो नय तत्त्वज्ञान को ठीक तरह से समझने के लिये है। धर्म के आचरण के लिये जैन तत्त्ववेत्ताओ ने 'नय' को दो-विभागो मे वांट दिया है -
(१) निश्चय नय। (२) व्यवहार नय।
यहाँ पर 'निश्चय' का अर्थ मूलभूत सिद्धान्त, ध्येय अथवा एक और अबाधित सत्य, इस प्रकार किया गया है। लेकिन 'व्यवहार' मे प्रत्यक्ष रूप से जिसमे सिद्धान्त का दर्शन न हो, फिर भी उस सिद्धान्त की पूर्ति के लिये व्यवहार मे आचरण करते समय जो उपयोगी सिद्ध हो, ऐसे विषयो को सम्मिलित किया गया है । मूल सिद्धान्त का बाधक, विरोधी या उन्मूलक