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कि परोक्ष प्रमाण के अनुमान, उपमान और ग्रागम अथवा श्रुतप्रमाण, इस प्रकार तीन भेद है । इस विषय की अधिक जानकारी ग्रागे चलकर दी जाएगी ।
(१३) ऊपर जो प्रमाण बताये गये है, उन प्रमाणो द्वारा वस्तु का निर्णय करने के लिये जैन दार्शनिको ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव नामके चार साधन वतलाये है । उन्हे हम चार ग्राधार भी कह सकेगे। इन चारो के लिए 'चतुष्टय' नाम दिया गया है | इन्हे प्रमाण मे ज्ञेय चीज के विभाग 'निक्षेप' भी कहा जाता है । प्रत्येक वस्तु का निर्णय करते समय इस 'चतुष्टय' की अपेक्षा का अधिक महत्व रहता है । इसके भी 'स्व-चतुष्टय' और 'परचतुष्टय' नाम के दो विभाग है । इनके बारे मे कुछ अधिक जानकारी ग्रागे के पृष्ठो मे प्राप्त होगी ।
(१४) ऊपर बताये गये तथा अन्य विषयो की जानकारी जिसमे दी गयी है वह तत्त्वज्ञान जैन दार्शनिको मे श्रनेकातवाद, स्याद्वाद तथा मापेक्षवाद यादि नामो से पहचाना जाता है । यह तत्त्वज्ञान सर्वज्ञ भगवतो द्वारा प्रदान किया गया है ।
(१५) स्यादवाद तत्त्वज्ञान को समझने के लिये जो पद्धति बनाई गयी है उसे 'नय' नाम से पहचाना जाता है । इस 'नय' शब्द को हम ' अपेक्षा के कारण प्राप्त वस्तु का ज्ञान Relative Knowledge इस अर्थ मे लेगे। इस 'नय' के भी दो मुख्य विभाग हैं:
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(क) द्रव्यार्थिकः -- प्रर्थात् वस्तु के साधारण रूप की जो जानकारी दे (General) ।