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पुद्गल और जीव के साथ ही जो अस्तिकाय शब्द जोड दिया गया है वह सहेतुक है । 'ग्रस्ति' अर्थात् प्रदेश और 'काय' अर्थात् समूह | इन पाँचो द्रव्यो के ग्रसस्य या अनन्त प्रदेश श्रीर समूह माने गये हैं । इसीलिये 'अस्तिकाय' शब्द जोडा गया है । जब कि काल द्रव्य का कोई प्रदेश न होने के कारण उसके साथ यह शब्द नही जोडा गया ।
(e) उपरोक्त छ द्रव्यो के आधार पर ही जैन- दार्शनिकों द्वारा मुक्ति-मार्ग मे उपयोगी नी तत्वो के ज्ञान का निरूपण किया गया है | ये नौ तत्त्व निम्नलिखित है।
( १ ) जीव - चैतन्यशाली चेतन । जीव द्रव्य के श्राधार पर इसका निरूपण किया गया है ।
(२) प्रजीव - चैतन्यरहित जड पदार्थं । इसमे धर्म, धर्म, आकाश, पुद्गल और काल का समावेश हो जाता है । (३) पुण्य - अच्छे और शुभ कर्म ।
(४) पाप - बुरे कर्म |
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(५) आस्रव - आत्मा के साथ कर्म का सम्वन्ध होने का मार्ग ।
(६) सवर - जिसके द्वारा कर्म बन्धन होने से रोक दिया जाय । श्रात्मा मे प्रवेश करते हुए कर्मों को रोकने की आत्मा द्वारा संचालित क्रिया ।
(७) निर्जरा - कर्म का क्षय । इस क्षय के दो प्रकार है - ( १ ) ' सकाम निर्जरा' अर्थात् तपश्चर्या आदि साधनो द्वारा कर्मो का क्षय किया जाता है । (२) 'अकाम निर्जरा'