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वाते जगत के सामने प्रस्तुत की थी।
हम में से कोई भी व्यक्ति इस सीमा तक नहीं पहुँच पाया। लेकिन जो कुछ उन्होने कहा है उसे समझने की शक्ति भी हम मे नही ऐसा मानने की जरूरत नहीं है । इन बातो को समझने के लिये जिस प्रोत्साहन की आवश्यकता है उसे पाने के लिये यही एक कारण वस है कि इस परम पद को प्राप्त करने मे हम अभी तक सफल नहीं हो पाये। ___जैन तीर्थंकरो ने जगत को पूर्ण सत्य की खोज करने का, उसे समझने का तथा उसे प्राप्त करने का सही उपाय बताया है, इस बात को तो आज पौर्वात्य एव पाश्चात्य समर्थ विद्वान भी स्वीकार करने लगे है । सर्वज भगवन्तो ने जो उपाय हमे वताया है, उसका सहारा लेने से भला हमे कौन रोक सकता है ?
यदि हम वैज्ञानिक प्रयोगशालायो का निरीक्षण करे तो हमे पता चलेगा कि एक ही वस्तु पर अनेक प्रकार के प्रयोग हो रहे है। यदि कोई एक अन्वेषणकार्य पूरा हो जाय तो उसके बाद उसके फलस्वरूप प्राप्त हुई चीज पर पुन अन्वेषण कार्य शुरू होता है और यही कार्यक्रम जारी रहता है । इन सभी अन्वेपणो के पीछे जो एक मुख्य बल कार्य कर रहा है वह यह है कि 'जो कुछ भी प्राप्त हना है उससे भी विशेष
और कुछ है ।" अभी तक तो किसी वैज्ञानिक ने यह नही कहा कि जो कुछ खोज लिया गया है वह पूर्ण है और इससे अधिक या विशेष अव और कुछ नहीं है । यदि कोई यह कहे तो अन्वेषण कार्य की गति ही रुक जाएगी।