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होते है । ऊपर बताये गये सभी दूषण तो उन सब मे अवश्य रहते है। इसीलिये जैन तत्त्वज्ञानियो ने इस बात पर बार-बार जोर दिया है कि तीव्र बुद्धिशक्ति के बावजूद भी जब तक तटस्थता का भाव प्रकट नहीं होता तब तक पूर्ण सत्य की प्राप्ति असभव है । इसी कारण वे कहते है कि तटस्थवृत्ति को विकसित करना नितान्त आवश्यक है। ___ इस तटस्थवृत्ति को विकसित करने के लिए अज्ञानता दूर करके सच्चा (सम्यक्) ज्ञान प्राप्त करना होगा । जो झूठा ज्ञान (भ्रम) अर्थात् मिथ्या-ज्ञान है उसे फेक देना होगा, सभी प्रकार के पूर्वग्रहो को, पहले से बने हुए अभिप्रायों को जमीन मे गाडना होगा। अहंभाव से हमे बिल्कुल मुक्त रहना होगा। अन्ध स्वार्थ, भौतिक स्वार्थ जिसका इन्द्रियादिक वृत्तियो के साथ सम्बन्ध है, उसे भी दूर करना होगा। इन्द्रियादिक वासनामो तथा वृत्तियो की गुलामी से हमे पूर्ण स्वतत्रता प्राप्त करनी होगी। विवेक बुद्धि पूर्ण रूप से जागृत करनी होगी और समग्र जगत के प्रति करुणा एवं मैत्री की भावना हृदय मे जागृत करके सहिष्णुता की परमपावक ज्योति प्रज्वलित करनी होगी।
कुछ बहुत बडी बात कह दी, क्यो ?
यह सब पढकर घबराने की कोई जरुरत नही । जिन्होने 'अनेकातवाद' और 'स्याद्वाद' के अपूर्व तत्त्वज्ञान की भेट जगत को दी है वे सभी जैन तीर्थकर-सर्वज्ञ भगवतगरण ऊपर बताये गये तमाम दोषो से मुक्ति प्राप्त करने में सफल रहे थे और पूर्णज्ञान-केवल ज्ञान-प्राप्त करने के बाद ही उन्होने ये