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वश में करने की असमर्थता, अपनी ही बातो पर डे रहने की आदत तथा उसके फलस्वरूप कुछ भी न छोडने की असहिष्णुता इन सभी बातो मे श्राज का मानव समाज डूबा हुग्रा, खोया हुआ सा प्रतीत होता है।
देश-देश के बीच न जाने कितने प्रकार के झगडे होते ही रहते है । पहले जर, जमीन और जोरू को ही झगडे का मूल कारण मानते थे। लेकिन ग्रव रंग द्वेष (Colour Prejudice ) और वैचारिक या सैद्धान्तिक सङ्घर्ष (Ideological Conflicts ) के कारण भी झगड़ो में अभिवृद्धि हुई है । इन कारणो मे से किसी एक के उत्पन्न होने पर वह भयंकर झगडे का रूप धारण कर लेता है । इस तरह इन बातो पर विचार करने से हमे ज्ञात होगा कि ऊपर जितने भी कारण बताये गये है उनमे से कोई न कोई कारण स्वतंत्र रूप से या दूसरे कारणो से मिल कर इन सभी झगडो के पीछे अवश्य लगा हुआ है । चूकि हम यहाँ पर राजनैतिक विषय की चर्चा करना नही चाहते अतः उसकी गहराई में जाना उचित नही होगा। सत्ता का मोह, अन्धस्वार्थ मे समाविष्ट हो जाता है । ग्रासुरी शक्ति, विनाश के अभूतपूर्व साधनो का अस्तित्व प्रादि सभी कारणो की पृष्ठभूमि मे स्वार्थवृत्ति एव ग्रहभाव तो अवश्य होते है । इस बात को यही समाप्त कर अब आगे बढे ।
आज प्राय यह देखा जाता है कि वहुत-से प्रयोजन के विना ही तरह तरह की चर्चा करते साथ ही यह भी देखा गया है कि कुछ लोग किसी अभिप्राय को लिये पूर्वग्रह बाँधकर ही प्राते हुए
लोग किसी
रहते हैं ।
एक निश्चित नजर आते