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"अज्ञान, गलतफहमी पूर्वग्रह, अभाव, ममत्व, अधस्वार्थ, विवेकहीनता, वासनाओ की गुलामी और ग्रसहिष्णुता यदि कारण ही झगडो के मूल मे रहते है ।
लेकिन सबसे बडा दुर्भाग्य तो यह है कि कोई भी व्यक्ति अपने आपको इनमे से थोडे से, सभी अथवा किसी एक कारण के लिए भी जिम्मेदार मानने को तैयार नही होता । मानना तो दूर रहा, लेकिन इस वारे मे विचार करने की भावना या इच्छा भी उसके हृदय मे कदाचित् ही प्रकट होती है ।
अपने बारे मे दूसरे लोगो के मनमे गलतफहमी है, ऐसा कहने वाले लोग तो अनेक है लेकिन इस प्रकार की बात करने वाले व्यक्ति के खुद के मन मे दूसरो के लिये ऐसी ही गलतफहमी है, इस बात को स्वीकार करने के लिये अथवा विचार करने के लिये भला कितने लोग तत्पर होगे ?
मित्र-मित्र मे, व्यापारी सम्बन्धो के सिलसिले में, पतिपत्नी, भाई-भाई, सास-बहू, देवरानी-जेठानी, पिता-पुत्र, देवरभौजाई, ननद-भौजाई ग्रोर ग्रडोसी - पडौसी के सम्वन्धो मे वैमनस्य, क्लेग, टटे-फिसाद ढूंढने के लिए कही हमे दूर जाने की आवश्यकता नही है ।
सच्ची बात का ग्रज्ञान, गलत खयाल अर्थात् अज्ञान, पहले से ही वने बनाये अभिप्राय अर्थात् पूर्वग्रह, 'अन्य सभी लोगो मे मै श्रेष्ठ और निराला है' ऐसा ग्रहभाव, तुच्छ स्वार्थ, विचार करने के लिये जिस शुद्ध और शास्त्रीय तर्क के ज्ञान की ग्रावश्यकता है उसका अभाव तथा उसके फलस्वरूप पैदा होने वाली विवेकशून्यता, अपनी इन्द्रियो की वासनाओ को