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स्वर्गीय श्री किशोरलाल मगरुवाला जब गाधीजी के श्राश्रम मे रहने गये उस समय वे स्वयं स्वामीनारायण पथ के पक्के अनुयायी थे और उनकी यह हार्दिक इच्छा थी कि गाधीजी को भी स्वामी नारायण--पथ मे मिलाकर उन्हे राहजानन्द स्वामी के ग्रनुयायी बना ले । यह वात उन्होने स्वय लिखी है । इन समभावी एव बुद्धिशाली किशोरलाल भाई की श्री केदारनाथजी से जब भेंट हुई तब उन्हे कुछ और ही तरह का अनुभव हुआ | श्री केदारनाथजी के सम्पर्क मे थाने के बाद उन्हें 'सत्य' की प्राप्ति हुई है इस प्राशय का एक तार उन्होने श्रावू पर्वत से अपने ग्राप्त जनो के नाम भेजा था इसके विपरीत श्री केदारनाथजी ने स्वयं कहा है कि उनको ( किशोरलाल को ) तथा वैसे ही दूसरे सज्जनो सन्तो तथा योगियो को जो अनुभव हुए है, वे अपूर्ण है ।
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जब हमारे चारो मोर ऐसी ही परिस्थिति नजर ग्राती हो तब स्वाभाविक तौर पर ऐसा प्रश्न मन मे उपस्थित हुए विना नहीं रह सकता कि "हमे क्या मानना चाहिये इस मानने के बारे में एक सर्वसाधारण अभिप्राय ऐसा है कि हम जो कुछ भी समझ ले अथवा स्वीकार कर ल वह सव सतर्क, सुतर्कयुक्त, उदाहरण श्रीर दलील से सुसगत होना चाहिये । किसी भी बात को तर्क ( Logic ) का समर्थन प्राप्त न हो तो उसे गलत समझकर छोड़ देना चाहिए ।
इस प्रकार की मान्यता मे एक अत्यन्त महत्त्व की बात तो हम भूल ही जाते है और वह यह है कि जिसे हम तर्क के नाम से पहचानते है वह 'शुद्ध' एव 'सम्पूर्ण' है क्या