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पुरुषार्थ होता आ रहा है वह एक सबसे बड़े गौरव की बात है। फिर भी हम देख रहे है कि ये मतभेद कम होने के बदले बढते ही जा रहे है।
फिर भी इससे निराश होने की कोई आवश्यकता नही, जिस तरह से ये मतभेद एव मतमतातर अनादि अनन्त है ठीक उसी तरह साथ ही साथ 'मत्य क्या है ?" इस विषय मे मनुष्य की जिज्ञासा भी अनादि अनन्त है। मनुष्य के हृदय मे आदि काल से यह जिज्ञासावृत्ति सुरक्षित रही है और अनन्तकाल तक वह जीवित रहेगी। जब तक मनुष्य के मनमे से 'सत्य की खोज' की यह वृत्ति लुप्त न होगी तब तक तो उसके विकास मे कोई वाधा न पहुंचेगी।
इस जगतीतल पर आज जितने भी तत्त्वज्ञान विद्यमान है उन सभी की उत्पत्ति मनुष्य की इस जिज्ञासावृत्ति के विकास मे से ही हुई है। सदैव नई चीज देखने की तथा जानने की मनुष्य की जिज्ञासावृत्ति को धन्यवाद देते हुए तथा उसे वन्दन करते हुए जब हम आगे बढेगे तो सर्वप्रथम हमारे मस्तिष्क मे यही एक विचार पाएगा कि इस जिज्ञासावृत्ति से विश्व को जो कुछ भी लाभ प्राप्त हुआ है उसमे ठोस सत्य क्या है ? ____ यह प्रश्न सचमुच वडा जटिल है। जिज्ञासा को सन्तुष्ट करने के लिये किसने मेहनत की ? कितनी मेहनत की? किस तरह की ? उसके पीछे कितना समय गवाया ? इन सभी वातो पर हमे सोच-विचार करना होगा। इन बातों पर