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मे स्फूर्तिदायक विविधता प्रकट होती है। परन्तु यदि दोनो व्यक्ति ऐसी वृत्ति लेकर बैठे कि 'म ही सच्चा हूँ और तुम गलत ही हा' तो उससे अधमता उत्पन्न होती हे और अवनति की तृष्टि होती है।
पश्चिम के देशो में जब बुद्धिशाली मनुष्य चर्चा करने वैठते है, और जब एक दूसरे की राय से सहमत होना असभव होता है तबै अलग होते समय दोनो एक बात स्वीकार कर के, एक दूसरे से हाथ मिला कर पार एक दूसरे के प्रति शुभ कामना प्रकट करके अलग होते हैं। वे जिस बात पर 'सहमत' होते हैं वह यह है, (We agree to disagree) हम दोनो मे मतक्य नहीं है, इस बात पर हम दोनो सह्मत है।
कितनी अच्छी बात है। इसमे वैमनस्य नहीं है। इसके वाद वे कहेगे, (We shall thy again) फिर प्रयत्न करेगे।
तात्पर्य यह कि इम पुस्तक मे जो कुछ लिखा गया है उनका उद्देश्य किसी प्रकार के वादविवाद या खडन-मडन के वितडावाद मे पडना नहीं हैं। फिर भी इस पुस्तक को पढने के बाद कोई गकाएं उत्पन्न हो तो उनका निवारण करना अनुचित नहीं होगा।
हम प्रश्नोत्तर द्वारा यह विवरण देगे तो प्रश्न और उसके उत्तर को समझने से आनन्द होगा।
प्रश्न-बौद्ध मतानुसार वस्तु 'अनित्य' है। वेदान्त मत वस्तु को 'नित्य' मानता है। जैन दार्गनिको ने दोनो वातो को एकत्रित कर कहा है कि वन्तु नित्य भी है ओर अनित्य भी । इसमे क्या नयी वात कही ? उलटा सगय पेदा किया।
उत्तर-वस्तु को केवल नित्य या केवल अनित्य मान