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या सूक्ष्म प्राणी के शरीर को पीडा या दुख हो तो वह तो हिसा है ही, अपितु किसी के मन को जरा सा दुख पहुँचे ऐसे तभी कर्म भी हिसा मे समाविष्ट है । फिर वे काया से हो, वचन से हो, चाहे विचारो से हुए हो ।
कर्म के सम्वन्ध मे 'मनसा, वाचा, कर्मरणा' इन तीनो प्रकारो का समावेश हो जाता है । मन, वचन या काया से होने वाले सभी कार्य (कर्म) आत्मा के लिए बन्धन पैदा करते है |
आज 'अहिंसा' शब्द तो विश्वव्यापक ( Universal ) समझ का विषय है । पहले के २३ तीर्थकरो द्वारा एव चौबीसवे तीर्थकर भगवान् श्री महावीर स्वामी और भगवान् बुद्ध द्वारा प्रवहमान रखे हुए इस शब्द का मानव अहिसा का राजनीति मे एव समाज - जीवन मे व्यापक उपयोग करने का भगीरथ पुरुषार्थ करके स्वर्गीय महात्मा गाँधी ने दुनिया के सभी लोगो को 'अहिंसा' शब्द से परिचित वना दिया है।
फिर भी अहिसा का बहुत स्थूल अर्थ ही दुनिया के वडे हिस्से तक पहुँच पाया है । पर अर्थात् अन्य मानव को दुख पहुंचाने वाला कोई कार्य नही करना, यही अहिसा है, ऐसा सीमित अर्थ ही अधिकाश लोग समझते है । परन्तु जिस कार्य से पशु पक्षी, यहाँ तक कि किसी भी सूक्ष्म जीव को भी दुख हो, और 'स्व' अर्थात् हमारा अपना ग्रहित हो, वह कार्य करना भी हिसा है । ग्रहिसा का ऐसा पारमार्थिक अर्थ अभी तक अधिक लोग समझे हो ऐसा नही मालूम होता ।
अहिसा के सच्चे अर्थ मे तो मनुष्य ही नहीं, अपितु पशुपक्षी, कोडे-मकोडे आदि निराधार जीवो की हिंसा भी वर्ज्य