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इसके समान उत्कृष्ट मार्ग ससारी आत्मायो के लिये अन्य कोई नही है । 'स्यादवाद' हमे इस संसार मे रहे हुए असार और सार का यथार्थ दर्शन कराता है ।
दुख से त्रस्त हुए कई ससारी महानुभाव भी ऐसा कहते हुये पाये जाते हैं कि 'समार प्रसार है। कई एकान्तवादी सज्जनो को ऐसा कहते सुना है कि इस संसार में कोई सुख नही रहा, मन्यस्त अगीकार करने के सिवा अब अन्य कोई मार्ग हमारे लिये नही है।
ऐसी बात सुनकर पूज्य श्रीहरिभद्र सूरीश्वरजी महाराज रचित कुछ श्लोक याद अाए विना नहीं रहते ।
श्रीहरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज फरमाते है - 'वैराग्य तीन प्रकार के होते है - (१) मार्तध्यान गभित (दुखभित) (२) मोहभित (३) ज्ञानभित
दुःख, उद्वेग और रोप जि पके मूल मे हो उसे प्रार्तध्यान कहते है। इष्टवियोग तथा अनिष्ट-सयोग आदि निमित्त अमद्य लगने के कारण उनसे छूटने के लिए जो वैराग्य होता है वह प्रार्तध्यानभिन वैराग्य माना जाता है । उसमें अपनी गक्ति के अनुसार भी हेय (त्यागने योग्य) पदार्थ का त्याग तथा उपादेय (ग्रहण करने योग्य) पदार्थ का ग्रहण नहीं होता। इस प्रकार का वैराग्य 'बार्त यान' की प्रधानता के कारण उद्वेग करने वाला, विपाद से पूर्ण तथा आत्मघातकता आदि का कारण होता है । उसे मात्र लोकदृष्टि से ही वैराग्य कहा जाता है।