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३३४ में से छूट जाता है और लोकाकाश के अग्रस्थान पर अपना स्थान प्राप्त करके चिरजीव (शाश्वत) स्थिरता प्राप्त करता है।
मनुष्य की भोगोपभोग पर आसक्ति मे प्रायः 'स्त्री' का स्थान सबसे आगे है । प्रात्मा के इस भोग-स्वभाव को लक्ष्य मे रख कर कई धर्म-पन्यो ने प्रात्मा के अन्तिम ध्येय रूप मुक्ति को 'प्रियतमा' कहा है। पश्चिम एशिया मे सूफीवाद के नाम से प्रसिद्ध पथ मुक्ति को 'माशुक' मानता है । हमारे यहाँ भी श्रीकृष्ण के अनुयायीवर्ग मे श्रीकृष्ण की पत्नी 'राधा' को भजने वाला एक पथ है 'राधास्वामी' और दूसरा है 'श्रीराधे' । अपनी इच्छित प्रियतमा को प्राप्त करने के लिए भगीरथ पुरुषार्थ करना पुरुप का स्वभाव है-इस तथ्य को लक्ष्य मे रख कर ऐसे कुछ पन्थो के सस्थापको ने मुक्ति को 'माशुक' या 'प्रियतमा' बनाया है। लैला-मजनू तथा शीरीफरहाद की प्रेमकथाएं इस प्रकार के अनन्य प्रेम की प्रतिपादक है।
जैन धर्म में भी आत्मा की अन्तिम मुक्ति को 'शिवरमणी' 'मोक्षललना' आदि नाम दिये गये है। प्रत्येक जैन आत्मा की आराध्य देवी यह 'मुक्ति ही है । प्रत्येक मनुष्य की आराध्य देवी भी यही होनी चाहिए। ___आराध्य देवी 'मुक्ति-रमणो' के प्रति जितना उत्कट प्रेम होगा, उसे प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ भी उतना ही तीव्र होगा।
कर्मवन्ध के कारणो के अभाव ( सवर ) के द्वारा तथा कर्मक्षय (निर्जरा) के द्वारा वचेखुचे कर्मों का नाश करने