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३३३ than cure' जिसका अर्थ है," (रोग का इलाज करने की अपेक्षा उसे रोकना (न होने देना) बेहतर है।" यह उपदेश गारीरिक स्वास्थ्य के विषय मे है । बीमार होकर फिर दवाई
आदि से इलाज करके अच्छे होने की अपेक्षा बीमारी को आने से रोक देना अधिक अच्छा है।
इसी प्रकार कर्मो को वाँधकर उसके बाद 'सकाम निर्जरा' के द्वारा उनका क्षय ( नाग ) करने की अपेक्षा उन्हे 'सवर' के द्वारा बँधने से रोक देना अत्यधिक उत्तम और श्रेष्ठ मार्ग है । फिर भी अज्ञानवश जो कर्म बाध लिये गये हो उन्हे भुगते जाने के लिए छोड़ने की अपेक्षा 'सकाम निर्जरा' के द्वारा उनका शीघ्र तथा दृढता के साथ क्षय करना भी उतना ही आवश्यक है।
६ मोक्ष
नौ तत्त्वो मे से अन्तिम नौवाँ तत्त्व 'मोक्ष' है । आत्मा को बाधकर बैठे हुए सभी कर्मो के क्षय का नाम 'मोक्ष' है । यह परम आनन्द और चरम सुख की स्थिति है । जन्म मरण का चक्कर मिट जाता है, अनन्त सुख का भोक्ता बना हुआ आत्मा मोक्ष तत्त्व को प्राप्त करके अपनी अनन्तानन्त-लाखो करोडो वर्षों की तथा अनन्त दुःखो की घटमाला के समान ससार यात्रा से मुक्त हो जाता है। __ जब आत्मा अपने विकासक्रम की उच्च श्रेणी पर उच्चतम भूमिका पर पहुँचता है तव उसके आठो कर्मों का नाश हो जाता है। पहले चार घाती कर्मो के क्षय से केवलज्ञान प्राप्त होता है, और वाद मे वह चार अघाती कर्मो का नाश (भय) करके सिद्धत्व-मोक्ष प्राप्त करता है । वह ससार के गुरुत्वाकर्षण