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ही कर्म का ग्रात्मा से चिपकना और एकाकार हो जाना 'वध' के नाम से पहचाना जाता है ।
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, कर्म के मुख्य आठ प्रकार है । तदुपरान्त उनके १५८ उपविभाग है, और उन उपविभागों के उपविभाग तो असख्य है । कर्मो की दुनिया भी विराट और अनेक श्राश्रयों से पूर्ण है ।
कई कर्म जल की धारा की तरह बह जाने वाले होते है, क दूध की तरह चिकनापन अनुभव कराने वाले, कुछ दूध से अधिक गाढे, रेडी के तेल जैसे, कई कर्म कम चिपकने वाले गोद जैसे और कोई ऊँची किस्म के गोद की तरह चिपकने पर फिर न उखड़ने वाले होते है तो कई कर्म सिमेंटककरीट की तरह पक्के चिपकने वाले होते है ।
जिस प्रकार प्रदालत मे प्रस्तुत मुकदमो मे कई 'समरी सूट्स' अर्थात् तुरन्त निपटने वाले, कई स्मॉल कॉज, अर्थात् छोटी रकम के चौर जरा अधिक समय मे निपटने वाले, होते है और कुछ लॉंग कॉज, ग्रर्थात् वर्षो तक अदालत की सीढियो पर चढने वाले होते हैं, उसी प्रकार इन कर्मों मे से भी कई शीघ्र हो उदय मे आने वाले नकदी होते है, तो कई लम्बी अवधि के बाद उदय मे याने वाले होते है । कोई कोई कर्म अनेक जन्मो के बाद भी उदय मे आते है।
जब किसी भी कर्म का बन्धन होता है तब उसकी समयमर्यादा भी - ( ग्रर्थात् वह कर्म ग्रात्मा के साथ कितने काल तक चिपका रहेगा ) उसी समय निश्चित हो जाती है । जिस समय कर्म बँधता है, तब तुरन्त ही उसका फल - भला-बुरा परिणाम - मिल जाय, ऐसी बात भी नही है । वह अपने